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समय से पहले ना छोड़े घोंसला

चिठ्ठाकारी
चिठ्ठाकारी
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पंक्षियों का संसार बहुत ही निराला होता है। इनके पास उड़ने के लिए सारा आसमान होता है जहां ना सरहदें होती हैं ना पाबंदियां। लेकिन हां आसमान में यूं उड़ने के लिए पंक्षियों के पास “पर” तो हैं पर अगर उड़ना ही ना आए या समय से पहले उड़ने की कोशिश करें तो पंक्षी बुरी तरह चोटिल या कई बार मर भी सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि समय आने पर और माता पिता की निगरानी में ही पंक्षी उड़ने की तैयारी करें. फिर चाहें वह बेशक कई बार फेल हो पर समय होने के बाद उड़ने में कोई हर्ज नहीं है।


यही बात हमारे यानि मनुष्य के बच्चों के साथ भी लागू होती है। अगर बच्चें भी समय से पहले मा-बाप का कहा ना मानें और घर-परिवार से अलग रहे तो यह चिंता का विषय है। आजकल कई बच्चे ऐसे हैं जिन्हें घर के माहौल या पढ़ाई के प्रेशर के कारण घर से भागते हुए देखा जाता है तो समाज के लिए चिंता का विषय है।



घर से दूर जाना नहीं है उपाय

कई बच्चें सोचते हैं कि अगर फेल हो गए तो घर छोड़ देते हैं इससे जिंदगी आसान हो जाएगी। भला यह भी उपाय हुआ। असफल होने पर घर छोड़ देना या खाना ना खाना या आत्महत्या कर लेना ऐसा ही जैसे किसी लड़ाई से मुंह फेर देना।

घर से दूर जाकर या जिंदगी खत्म कर लेना किसी परेशानी का हल नहीं है। आज कई लोग खुद को मौत के मुंह में धकेल कर या घर छोड़ कर खुद को आजाद समझते हैं। ऐसे बच्चें अपने पीछे अपने मां-बाप को ऐसा दर्द देते हैं जिसे वह कभी नहीं समझ पाते। अगर बच्चा एक रात घर से बाहर रह जाए तो मां बाप के मन में कैसे कैसे ख्याल उठते हैं जरा इसपर भी नजर डालें:

  • कहीं बच्चे ने कुछ खाया होगा या नहीं
  • बच्चा कहां होगा या कैसे होगा?
  • कहीं बेहोश तो नहीं हो गय होगा?
  • किसी असमाजिक तत्व ने तो उसे नहीं पकड़ लिया?
  • कहीं किसी भिखारी ने पकड़ कर हमारे बच्चें के हाथ-पांव तो नहीं काट कर कहीं भीख मांगने के लिए लगा दिया?
  • कहीं किसी गिरोह ने पकड़ कर बच्चे के अंग तो नहीं निकाल दिए?
  • कहीं बच्चा मर तो नहीं गया?
  • हमारा बच्चा वापस आएगा भी या नहीं?

ऐसी तमाम बातें होती हैं जो एक मां बाप के दिमाग में आती है जिसका उनके बच्चों को इलम तक नहीं होता। वह अपने माता-पिता के दर्द को समझ ही नहीं पाते। एक मां अपने बच्चें को नौ महीने तक गर्भ में रखती है फिर तीन साल तक उसको साथ रखकर पालती है और जिंदगी भर उसे प्यार करती है लेकिन उस मां को भी छोड़कर कुछ बच्चें सांसारिक मोह-माया के चक्कर में फंस जाते हैं। चार दिन की बाबू, जानू कहने वाली गर्लफ्रेंड जिंदगी भर लडडू गोपाल, किशन कन्हैया कहने वाली मां से अच्छी लगने लगती है।

फेल हो जाना या गलती कर देना सामान्य बात हैं इसपर डांट खाना या माता पिता से मार खाना भी बेहद सामान्य है। इस बात को बच्चों को स्वीकार करना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि मां बाप हमारी भलाई के लिए ही कुछ कर रहें है युवावस्था या बचपन में की गई गलती का कई बार जिंदगी भर रोना हो जाता है। इसलिए इस बात को समझना चाहिए कि गलती करना अगर स्वभाविक है तो इसके लिए मार खाना या डांट खाना भी बेहद आम बात है।



बद से बदतर हो जाती है जिंदगी

घर से भाग जाने पर मां-बाप की तो जो हालत होती है वह होती है लीकिन इससे बच्चें भी खुश नहीं रह पाते। कोई नशे की आदत में फंस जाते हैं किसी को भिखारी गैंग अपना सदस्य बना लेता है तो कोई गैर-कुश्ल कारीगर जैसे मजदूर या फैक्टरी में  लग जाते हैं। इससे भी ज्यादा बुरी दुर्गति उन लड़कियों की होती है जो गुस्से में अपना घर छोड़ देती हैं। ऐसी अधिकतर लड़कियां या तो बड़े घरों में नौकरी करती हैं या अक्सर बुरे लोगों के संपर्क में आकर देह व्यापार के गंदे दलदल में फंस जाती हैं।

इसलिए अच्छे सपने और खुले आकाश में उड़ने के लिए पर तभी फैलाए जब आपके पर निकल जाएं और जब समय की हवा आपके साथ हो।

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