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देशभक्ति का कोई क्रैश कोर्स नहीं होता

चिठ्ठाकारी
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देशभक्ति का कोई क्रैश कोर्स नहीं होता
देश में इन दिनों सीबीएसई के बोर्ड की परीक्षाएं शुरु होने वाली है। यह समय होता है जब बच्चें अकसर छूटे हुए पाठों को जल्दी से जल्दी निपटाने और समझने के लिए क्रैश कोर्स की सहायता लेते हैं। क्रैश कोर्स में हर चीज को जल्दी जल्दी पढ़ाया जाता है, कम समय मे अधिक कोर्स निपटाने का प्रयास करा जाता है। इस दौरान ज्यादातर सिर्फ ऊपरी चीजों को समझाया जाता है बारिकियों पर अधिक गौर नहीं किया जाता है। कुछ ऐसा ही कुछ माहौल आजकल टीवी शो और अखबार वाले देशभक्ति को लेकर चला रहे हैं।
जेएनयू ना हो गया बवाल हो गया
जेएनयू के कैम्पस में बैठकर चन्द बच्चों ने देश विरोधी नारे लगा दिए तो हो गया बुद्धिजीवि वर्ग परेशान। चन्द आवाजों को देश के लिए खतरा मानकर इसे एक नेशनल इश्यू बना दिया और हद तो तब हो गई जब इन उद्दंड युवाओं को कुछ न्यूज चैनलों ने हीरो बनाकर पेश कर दिया।
सवाल यहां यह नहीं था कि इन तथाकथित हाई एज्यूकेटेड बच्चों ने आखिर कहा क्या? सवाल यह है कि लोगों ने इसपर किस तरह की प्रतिक्रिया दी? और आखिर क्यूं ऐसा हुआ?
दरअसल इसके पीछे का एक बड़ा ही मूल कारण है हमारे बच्चों की किताबों से गायब होते आजादी के वीरों, देशभक्ति की कविताओं, रामायण और महाभारत की कहानियां।
एक समय होता था जब हिन्दी की किताबों के मुख्य पाठों में चन्दशेखर आजाद, गांधीजी, नेहरु जी, वल्लभभाई पटेल आदि की कहानियां होती थी। फिर कआया दौर प्राइवेट स्कूलों का जिन्होंने उच्च और हई क्वालिफिकेशन देने के चक्कर में इन पाठों को अपने कोर्स से हटा ही दिया।
आजकल 6, 7 या आठवीं कक्षा के बच्चों को टीचर होमवर्क और असाइनमेंट के तौर पर मॉडल, पेंटिग बनाने पर अधिक जोर देते हैं लेकिन बच्चों को इन महान हस्तियों के बारें में लिखने को प्रेरित नहीं करते। घर पर टीवी पर बच्चें अपने बड़ों को सरकार और देश को कोसते नजर आते हैं। यह सभी घटनाएं बच्चों के दिमागों में बैठती हैं और आगे जाकर वह इतने समझदार हो जाते हैं कि “हिन्दूस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाने है या “पाकिस्तान मूर्दाबाद” इस बात का फर्क  ही नहीं कर पाते हैं।
अगर हम बच्चों को शुरु से ही सही सिख दे कर रखें तो हो सकता है हमें उन्हें यूं टीवी शोज पर देशभक्ति का क्रैश कोर्स देने की जरूरत ना पड़े।

देश में इन दिनों सीबीएसई के बोर्ड की परीक्षाएं शुरु होने वाली है। यह समय होता है जब बच्चें अकसर छूटे हुए पाठों को जल्दी से जल्दी निपटाने और समझने के लिए क्रैश कोर्स की सहायता लेते हैं। क्रैश कोर्स में हर चीज को जल्दी जल्दी पढ़ाया जाता है, कम समय मे अधिक कोर्स निपटाने का प्रयास करा जाता है। इस दौरान ज्यादातर सिर्फ ऊपरी चीजों को समझाया जाता है बारिकियों पर अधिक गौर नहीं किया जाता है। कुछ ऐसा ही कुछ माहौल आजकल टीवी शो और अखबार वाले देशभक्ति को लेकर चला रहे हैं।


जेएनयू ना हो गया बवाल हो गया

जेएनयू के कैम्पस में बैठकर चन्द बच्चों ने देश विरोधी नारे लगा दिए तो हो गया बुद्धिजीवि वर्ग परेशान। चन्द आवाजों को देश के लिए खतरा मानकर इसे एक नेशनल इश्यू बना दिया और हद तो तब हो गई जब इन उद्दंड युवाओं को कुछ न्यूज चैनलों ने हीरो बनाकर पेश कर दिया।


सवाल यहां यह नहीं था कि इन तथाकथित हाई एज्यूकेटेड बच्चों ने आखिर कहा क्या? सवाल यह है कि लोगों ने इसपर किस तरह की प्रतिक्रिया दी? और आखिर क्यूं ऐसा हुआ?


दरअसल इसके पीछे का एक बड़ा ही मूल कारण है हमारे बच्चों की किताबों से गायब होते आजादी के वीरों, देशभक्ति की कविताओं, रामायण और महाभारत की कहानियां।

एक समय होता था जब हिन्दी की किताबों के मुख्य पाठों में चन्दशेखर आजाद, गांधीजी, नेहरु जी, वल्लभभाई पटेल आदि की कहानियां होती थी। फिर कआया दौर प्राइवेट स्कूलों का जिन्होंने उच्च और हई क्वालिफिकेशन देने के चक्कर में इन पाठों को अपने कोर्स से हटा ही दिया।

आजकल 6, 7 या आठवीं कक्षा के बच्चों को टीचर होमवर्क और असाइनमेंट के तौर पर मॉडल, पेंटिग बनाने पर अधिक जोर देते हैं लेकिन बच्चों को इन महान हस्तियों के बारें में लिखने को प्रेरित नहीं करते। घर पर टीवी पर बच्चें अपने बड़ों को सरकार और देश को कोसते नजर आते हैं। यह सभी घटनाएं बच्चों के दिमागों में बैठती हैं और आगे जाकर वह इतने समझदार हो जाते हैं कि “हिन्दूस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाने है या “पाकिस्तान मूर्दाबाद” इस बात का फर्क  ही नहीं कर पाते हैं।

अगर हम बच्चों को शुरु से ही सही सीख दे कर रखें तो हो सकता है हमें उन्हें यूं टीवी शोज पर देशभक्ति का क्रैश कोर्स देने की जरूरत ना पड़े। और अगर बच्चें कभी नादानी करें भी तो उन्हें सिर्फ समझा दें कि वह क्या गलत कर रहे हैं क्या नहीं करना चाहिए?


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