- 80 Posts
- 397 Comments
(प्रवासी कर्मचारियों की कहानी)
एक घोंसला पक्षी का बसेरा होता है। उस घोंसले को बनाने के लिए पंक्षी दूर-दराज से पते इकठ्ठे करता है। मेहनत से एक घोंसला बनाता है लेकिन अकसर खाने की तलाश में उसे घोंसला बदलते रहना पड़ता है। जरूरतों के अनुसार ढ़लना ही प्रकृति का सबसे बड़ा और कड़ा नियम है। एक पंक्षी चाहे कितने ही घोंसले क्यूं ना बदल ले लेकिन जिसमें पेड़ की डाली पर उसका जन्म हुआ हो वह उसे कभी नहीं भूलता, वह अगर उस जगह ना आ सके तो कोई बात नहीं लेकिन अगर वह उस पेड के पास आता है तो उसे दिमाग में अपनी जमीन से जुड़ने का अहसास जरूर होता है।
बात की पक्षियों की नहीं इंसानों की भी है। खानाबदोश तो इंसान बहुत पहले से था लेकिन खाने की तलाश में अपनी जमीन से अलग होने की शुरुआत मनुष्य ने हाल के सालों में ही की है। मनुष्य ने हाल के सालों में ही अपनी जमीन छोड़ कहीं और घर बसाने के इरादे के बारें में सोचा है। बात काफी गहरी है जिसके लिए एक गहरी सोच का होना बेहद जरूरी है। आज भारत के महानगरों में रहने वाली आबादी का लगभग 80% हिस्सा दूसरे राज्यों से आता है। यह वह जनसंख्या है जो दूसरे राज्यों से अपना आसार छोड़ कर आई है। कई लोग इन्हें “प्रवासी मजदूर या कर्मचारी” कहते हैं। कई लोग आज अयह सवाल उठाते हैं कि आखिर क्यों यह प्रवासी मजदूर अपना घर-बयार छोड़ कर दूसरे राज्यों में बस जाते हैं और फिर वहीं के हो जाते हैं? क्या गांवों से आने वाली इस सूनामी को महानगरों की चकाचौंध लुभाती हैं या इंसानी नियति के अनुसार यह भी प्रकृति के अनुरूप ही बदल जाते हैं? सवाल कई हैं, जिनके जवाब भी अलग-अलग हैं? आइयें सिलसिलेवार तरीके से जानें इन जवाबों को:
Read Comments