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शील, शालीन और अश्लील

चिठ्ठाकारी
चिठ्ठाकारी
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दिल्ली और एनसीआर में बढ़ते गैंग रेप की घटनाओं को देखते हुए हरियाणा के डिप्टी कमिश्नर ने गुड़गांव में काम करने वाली अधिकतर कंपनियों को रात आठ बजे के बाद महिलाओं को काम पर रोकने से पहले श्रम विभाग से मंजूरी लेने के आदेश दिए. इस आदेश के पीछे मकसद था महिलाओं को रात के समय बाहर ना निकलने देना, ऐसा करने से पुलिस तंत्र “ना रहेगा बाजा ना मचेगा शोर” की तरकीब आजमाना चाहती है.


SEXऐसा करने वाले हरियाणा के डिप्टी कमिश्रर ही अकेले नहीं हैं बल्कि यहां तो कए शख्स ऐसे भी हैं जो महिलाओं के वस्त्रों को रेप और बलात्कार की प्रमुख कारण मानते हैं. अब इन लोगों को कौन समझाएं की खोट महिलाओं के कपड़ों मॆं नहीं कुछ तुच्छ पुरुषों की सोच में है. अब लोग कहते हैं महिलाएं जींस-टीशर्ट ना पहनें और सूट सलवार और साड़ी को अपनाएं पर उन्हें सोचना चाहिए कि वासना का भूखा सूट सलवार उर मिनी स्कर्ट में कोई फर्क नहीं देखता. उसकी नजरों में मिनी स्कर्ट वाली शील और सूट सलवार वाली अश्लील हो सकती है. सब कुछ निर्भर करता है उसे जानवर जैसे दिमाग पर.


जो लोग मानते हैं कि रेप, बलात्कार और गैंगरेप जैसी असमाजिक और अक्षम्य पाप की वजह महिलाओं का चाल-चलन है वह खुद या तो असुरक्षा की भावना में जीते हैं या वह पुरुषवादी समाज का हिस्सा होते हैं जहां महिलाओं को हमेशा पैर की जूती ही समझा जाता है.


अब अगर महिलाएं रात के आठ बजे के बाद घर के बाहर ना निकल पाएं तो फिर पूलिस वालों को क्या सरकार फोकट की तनख्वाह देती है.  या अगर सरकार और प्रशासन महिलाओं को सिर्फ रात आठ बजे तक ही की आधी सुरक्षा दे सकता है तो फिर उसे महिलाओं से आधा ही टैक्स लेना चाहिए. और जो लोग कहते हैं कि महिलाओं को कपड़े सही से पहनना चाहिए या रात को समय से घर चले जाना चाहिए उन्हें शील और अश्लील के बीच का फर्क समझाना चाहिए?


अब एक छोटी सी चीज देखिएं कई लोग कहते हैं कि साड़ी शालीनता कि निशानी होती है. लेकिन जो विकृत दिमाग के होते हैं उन्हें साड़ी में ही महिलाएं “असली देशी” और हॉट लगती हैं. साड़ी होती तो बेहद पारंपरिक है लेकिन साड़ी में कई ऐसी बातें होती है जिनपर अगर ध्यान ना दिया जाए तो वह बड़ी बेढ़ंग सी लगने लगती है. कहने वाले कहते हैं कि जिंस और टीशर्ट जैसे पहनावे भड़काऊं हैं लेकिन जींस और टीशर्ट में शरीर का कोई और अंग तो नहीं दिखता बल्कि साड़ी से पीठ, पैठ जैसे कई हिस्से साफ दिखते हैं.


खैर जैसा मैंने पहले कहा है कि एक पापी, नीच और अधर्मी इंसान के लिए शील, शालीन और अश्लीलता में कोई खास अंतर नहीं होता इसी तरह उसके दिमाग में साड़ी, फ्रॉक, जींस और स्कर्ट में कोई अंतर नहीं होता.


सरकार को यह बात समझनी चाहिए कि बदमाशों के दिल में खौफ तभी पैदा होगा जब कोई सख्त कदम उठाया जाएगा वरना ऐसी वारदातें तो दिन दहाड़े भी हो सकती है. धौला कुंआ जैसे हाइ प्रोफाइल इलाकों से दिन में ही लड़कियां उठा ली जाती हैं और इज्जत का नाश हो जाता है. ऐसी घटनाएं दिन और रात में भी फर्क नहीं देखती है. और ऐसे में प्रशासन कहती है कि महिलाएं रात को निकले ही ना तो इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या हो सकती है.


देश में आज जो महिलाओं की स्थिति है उसे देखते हुए तो हमारे देश में भी बलात्कार के दोषियों को सरेआम सजा मिलनी चाहिए. आखिर क्या महिला होना इस देश में पाप है?


SEX IN THE CITY

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