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गुम होते बच्चे : ना जाने कहां खो रही है रोशनी

चिठ्ठाकारी
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बीते दिनों यूं ही मेरी नजर एक खबर पर अटक गई. खबर आम थी. पर दिल को खास लगी. एक मां अपने बच्चे के खोने की रपट पुलिस में लिखवाने जाती है और पुलिस भी हमेशा की तरह कार्यवाही का भरपूर भरोसा देकर चल देती है. दरअसल बौद्ध नगर में एक छोटे से कमरे में रहने वाली सोमवती को अपने तीन बच्चों की वापसी का पिछले नौ साल से इंतजार है.


e02fc3ae-10da-4a8a-9ebf-14eb01b35604_310x235आंसुओं से भरी एक कहानी

वर्ष 2002 में सोमवती के 10 से 14 वर्ष की उम्र के तीन लड़के एक के बाद एक करके गायब हो गए. अपने बच्चों से बिछड़ने की पीड़ा झेलने वाली सोमवती अकेली नहीं है बल्कि ऐसे सैकड़ों मां-बाप हैं जो अपने खोए बच्चों की वापसी का आज भी इंतजार कर रहे हैं. सोमवती के बच्चों के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस ने पांच साल तक नहीं लिखी. इसके बाद वर्ष 2010 में इस मामले की फाइल बंद कर दी गई. पुलिस और प्रशासन के गलियारों में दर-दर भटक रही इस गरीब महिला ने स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से राष्ट्रपति से गुहार लगाई जहां से राज्य सरकार को इस मामले की जांच के निर्देश दिए गए. फाइल तो दोबारा खुल गई पर सोमवती आज भी बच्चों के इंतजार में पथराई आंखों से इन तंग गलियों को देखती है.


बड़ा आसान है लिखना

बड़ा आसान है यह लिखना की वह मां अपने बेटे के खोने के गम को झेल रही है पर वास्तव में उस स्थिति को सोच कर भी आंसू आ जाएंगे जब एक परिवार अपने बच्चे को खो देता है. हम लोग तो यही सोचते हैं कि लोगों की लापरवाही की वजह से बच्चें खो जाते हैं तो इसमें बुरा क्या. पर कई बार बच्चों के गुम होने में लापरवाही नहीं बल्कि किसी और का हाथ होता है. इस हाथ से ना हम उन्हें बचा पाते हैं ना पुलिस. अगवा करने वाले बदमाशों के दर्जनों गिरोह हमारे बच्चों पर साया बनकर मंडराते रहते हैं और हमें उनकी भनक भी नहीं लगती.


2868683180_3e06620b63कुछ आंकड़े – जरा गौर कीजिएगा

दिल्ली और उसके आसपास से लगातार बच्चे गायब होते जा रहे हैं. समस्या की गम्भीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में पिछले वर्ष प्रतिदिन 18 बच्चे गायब हुए. एक गैर सरकारी संस्था क्राई की रपट के अनुसार वर्ष 2010 में दिल्ली में पहले नौ महीनों में गायब हुए 2161 बच्चों में से 1102 लड़के और 962 लड़कियां थीं. इनमें से 1556 बच्चों को तो ढूंढ निकाला गया लेकिन 603 बच्चों का कुछ पता नहीं चला.


कहां खो रहे हैं देश के भविष्य

मध्यप्रदेश में वर्ष 2003 से 2009 के बीच 57253 बच्चे गायब हो गए. इनमें से लगभग 5350 बच्चों का आज तक पता नहीं चल पाया है. उत्तर प्रदेश के आठ जिलों में अक्टूबर 2010 में सूचना का अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार 250 बच्चे गायब हो चुके थे.


आपको लग रहा होगा कि मैं यहां आपको सिर्फ आंकड़े दिखा रहा हूं. पर यह आंकड़े नहीं वह तथ्य हैं जिसके बूते हम झूठे भाषण देते हैं कि बच्चे देश का भविष्य होते हैं. हमारी सरकार को जब हमारे वर्तमान की चिंता नहीं है तो वह किस मुंह से हमारे भविष्य को बचाएगी.

बच्चों के गायब होने में कई बार परिजनों की गलती ही होती है. अक्सर देखने में आता है कि मां बाप तो दिन में काम पर निकल जाते हैं और पीछे रह जाते हैं बच्चे. अकेले बच्चों को गुमराह कर घर से भगा ले जाना शातिर बदमाशों के लिए कोई बड़ी बात नहीं होती. वहीं एक और चीज जो ध्यान देने योग्य है वह है घरेलू हिंसा. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे कारण मानकर ज्यादातर बच्चें घर छोड़ देते हैं और असामाजिक तत्वों की गिरफ्त में आ जाते हैं.


Child-Labour-In-India-02घर से बिछुड़े हुए अधिकतर बच्चे कभी भी दुबारा अपने परिजनों से नहीं मिल पाते. इधर के दिनों में यह देखा गया है कि अगवा किए गए बच्चों को मानव तस्करी या वेश्यावृत्ति जैसे कुकर्मों में धकेल दिया जाता है. अंग निकाल लेना, भीख मंगवाना, वेश्यावृत्ति करवाना, गुलाम बनाना आदि कई नीच कार्य है जो कुछ पशु रूपी इंसान इन बच्चों से करवाते हैं.


जिस देश के कानून में आए दिन बेहूदे नियम बनते जा रहे हैं जैसे गे कानून, वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देने की वकालत, कसाब जैसे अपराधियों को जिंदा रखने का नियम उस देश में भविष्य को बचाने के लिए ही कोई उपाय नहीं है उलटा यह तो उनका साथ देता दिखता है.


देश में बच्चों की तस्करी से सम्बंधित कोई अलग कानून नहीं है, इसलिए बच्चों की खरीद-फरोख्त अथवा तस्करी को कानूनी नजरिए से भारत में एक अलग आपराधिक श्रेणी में नहीं रखा जाता है.

और हां हमारे यहां वर्दीधारी भी कम नहीं है. पुलिसकर्मियों में ऐसे मामलों से निपटने के लिए संवेदनशीलता और दक्षता का अभाव एक ऐसी वजह है जिसकी वजह से अगर किसी गरीब का बच्चा गुम होता है तो वह पुलिस के पास जाने से पहले हजार बार सोचता है. ऐसे मामलों को पुलिस प्राथमिकता नहीं देती.


अगर आप पुलिस में ऐसे किसी केस की रिपोर्ट करवाने जाओ तो अगर लड़की के गुम होने की बात कहेंगे तो वह कहेंगे कि किसी लड़के के साथ चक्कर तो नहीं था और अगर लड़का होगा तो बोलेंगे तुम लोग मारते होगे इसीलिए भाग गया होगा. उनकी सोच यहीं तक रहती है.


वैसे हम भी लिखकर इस विषय के प्रति सिर्फ जागरुकता फैलाने के और कुछ नहीं कर सकते. लेकिन हां अगर हम चाहें तो गुमशुदा बच्चों और आवारा बच्

चों की मदद एक कॉल से भी कर सकते हैं. अगर आपको कहीं भी ऐसे बच्चे दिखाई दें तो बेझिझक 1098 पर फोन करके चाइल्ड हेल्प लाइन पर इनकी खबर दें और अगर कहीं किसी बेसहारा बच्चे पर कोई जुल्म हो रहा हो तो चुप ना रहें क्यूंकि आपकी आवाज किसी को आजादी दिलवा सकती है.

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