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आज लोग सड़कों पर उतरे हैं अन्ना हजारे के समर्थन में. तीन दिन पहले गांधीवादी विचारधारा को मानने वाले अन्ना हजारे को पुलिस ने उनके घर से ही गिरफ्तार कर लिया था. पुलिस को लगा कि अन्ना हजारे को गिरफ्तार कर वह दुबारा बाबा रामदेव वाला दृश्य दोहरा देगी पर ऐसा हुआ नहीं. मीडिया के शौकीन बाबा रामदेव तो राजनीति के चक्कर में पड़कर थोड़ा बहक गए इसलिए कांग्रेस ने भी ना आव देखा ना ताव बारह बजे रात को डण्डा चला कर रामदेव को लेडीज सुट-सलवार पहनने पर मजबुर कर दिया. पर रामदेव की नियत में खोट नहीं थी. भावनाओं को समझा जाएं तो सब ठीक था बस भारतीय जनता जरा भावुक है और वह बाबा राम की कॉरपरेट छवि को ही उनकी असलियत मानती है.
पहली बार जब अन्ना हजारे दिल्ली के जंतर-मंतर पर बैठे थे तब भी लोगों के दिलों में ज्वाला भड़की थी पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने आयोग नामक ब्रहमास्त्र छोड़कर इस ज्वाला को शांत कर दिया. पर इस बार तो कांग्रेस ने अन्ना को गिरफ्तार कर आग में पेट्रोल ही डाल दिया.
कहां अन्ना को जेपी पार्क में सिर्फ तीन दिन के अनशन की अनुमति मिली थी और अब बेचारी कांग्रेस और दिल्ली पुलिस को पंद्रह दिन तक रामलीला मैदान में नजर रखनी पड़ेगी. कहते हैं ना कि लोग अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारते हैं पर यहां तो कांग्रेस ने कुल्हाड़ी पर ही पांव मार लिए. और ऊपर से दिग्विजय, कपिल सिब्बल आदि के बयां आग में पेट्रोल से भी ज्यादा का काम कर रहे हैं.
पर सवाल है कि हर तरफ जो अन्ना अन्ना हो रहा है वह आखिर क्यूं हो रहा है? क्या वाकई हमारी लोकतांरिक व्यवस्था में कोई इंसान अनशन से सरकार को इतना झुका सकता है. जिस तरह से सरकार झुकती चली जा रही है उससे लगता है कि खुद सरकार ही इस सारे ड्रामे को आगे ले जाने में व्यस्त है. चार दिन के अन्ना के अनशन के बाद लोकपाल बिल के लिए कमेटी का गठन करना और अब अन्ना को अनशन के लिए जगह दे देना कहीं ना कहीं दाल में काले होने का भय दिखाता है.
अन्ना के साथ इतने सारे लोगों का जुड़ना जागरुकता की निशानी नहीं बल्कि भेड़चाल की रफ्तार दिखाती है. आम जनता भारी मात्रा में उनका समर्थन कर रही है. लोग अब लोकपाल को छोड़कर अन्ना हजारे के नाम पर सड़को पर इकठ्ठा हो रहे हैं. फेसबुक, ट्विटर पर युवा स्पोर्ट अन्ना के नारे लगा रहे हैं. पर क्या यही युवा लोकपाल बिल के बारें में पूरी सच्चाई जानते हैं.
भारत में एक चीज बडी देखने लायक होती है कि अगर हम किसी को इमोशनली अटैच कर लें तो उससे कोई भी गलत या सही काम करवा सकते हैं. सत्यसाईं से लेकर अन्ना तक सभी ने जनता को भावनात्मक तौर से जोड़ा है. अन्ना हजारे के साथ भी आज की युवा पीढ़ी भावनात्क तौर से जुड़ गई है और यही वजह है कि जो अन्ना हजारे कह रहे हैं वही आम जनता कर रही है.
मैं यह नहीं कहता कि अन्ना हजारे गलत हैं या उनका आंदोलन गलत है. देश में भ्रष्टाचार बुरी तरह से फैल चुका है और मैं भी इससे पीड़ित हूं पर अनशन से ब्लैकमेल करके सरकार को झुकाना सही नहीं है. कल को अगर कोई ऐसा ही बड़ा आदमी कश्मीर की जनता को अपने साथ मिलाकर अनशन पर बैठेगा और कहेगा कि कश्मीर को तेलंगाना की तरह अलग कर दो तो क्या सरकार मानेगी.
सवाल कई हैं जिनके जवाब शायद अभी कोई जानना नहीं चाहता. अभी तो हम सभी अन्ना हजारे माफ कीजिएगा लोकपाल बिल का समर्थन कर रहे हैं. पर मन में एक सवाल भी है कि क्या अनशन लोकतांत्रिक व्यवस्था में बात मनवाने का सही तरीका है?
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