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दिल्ली में गर्मी आजकल कुछ इस कदर बढ़ रही है जैसे चीन की जनसंख्या. दिन के समय तो अगर कोई काम ना हो तो बाहर निकलना काफी पीड़ादायक साबित हो रहा है और शाम के समय जब घर वापस आयो तो बिजली कटी हुई मिल जाए तो हजार-ढ़ेड हजार गालियां बीएसईएस वालों को मुफ्त में मिल जाती है. वैसे भी भारत में गालियां और सलाह एकदम मुफ्त मिलते हैं.
गर्मी इस बार जल्दी शुरु भी हो गई थी. मार्च महीने में ही गर्मी ने लोगों के पंखे और कूलर चालू करवा दिए थे. वैसे खबर यह भी है कि इस बार जितनी जल्दी गर्मी आई है उतनी ही जल्दी यह चली भी जाएगी क्यूंकि मानसून की दस्तक भारत के दरवाजे पर आ चुकी है. केरल में तो मानसून की पहली बारिश भी हो गई है लेकिन अभी दिल्ली दूर है.
मानसून आएगा तो हम जैसों को राहत मिलेगी लेकिन बारिश के बाद भी मानवजात को आराम नहीं होगा. तब कहेंगे कि जाम लग गया, पानी जमा हो गया, किचड़ फैल गई हजार नखडे है मानव के. बेचारे इंद्र भगवान भी परेशान रहते होंगे कि यह दिल्ली वालें चाहते क्या हैं? कमबख्तों को बारिश देता हूं तब हाय हाय करते है जाब बारिश नहीं करता तब हाय हाय करते है. इसलिए इस बार इन्द्र जी ने सोचा होगा कहने दो लोगों को लोगों का काम है कहना, मैं तो इस बार दिल्ली को भिगो कर ही दम लूंगा.
यह कैसे रहते होंगे
हमारे घर में तो कूलर है, पंखा है, फ्रीज है जो हमें गर्मी की मार से थोड़ा बचा लेता है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए गर्मी सिर्फ आग में जलने के अलावा कुछ नहीं. कई लोग इस कड़ी धूप में दिनभर काम करते हैं, मजदूर जलती सड़कों पर अपने कर्म का निर्वाह करता है तो एक मिस्त्री दूसरे के सिर को धूप से बचाने के लिए अपने सिर को कड़कती धूप में जलाकर मकान बनाता है. सड़को के किनारे रहने वालों की तो हालत और भी खराब होती है. इनको तो रहना ही सड़क पर होता है जहां दिन की गर्मी गाड़ियों के धुएं के साथ मिलकर मरने मारने को तैयार रहती है. ऐसे लोगों के लिए तो यह जीवन ही एक कठिन परिश्रम होता है. गर्मी में इन्हें गर्मी मारती है तो बरसात में पानी भिगोती है.
लेकिन कहते हैं ना जो इश्वर हमें जन्म देता है वही हमें पालता है तो उस इश्वर ने ही शायद इन लोगों की सहन शक्ति को इतना अधिक बढ़ा रखा है जो यह सभी दुख दर्द हंसते हंसते झेल जाते हैं.
शायद दूनिया का चक्र होता ही ऐसा है जहां सबके हिस्से में कुछ सुख तो कुछ दुख लिखे हुए हैं.
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