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ब्लॉग लिखने को यूं तो और भी कई मुद्दे थे पर यह मुद्दा थोड़ा ताजा है. ठीक खेत से निकली मूली की तरह. कल ही सुबह खबर मिली कि गांधीजी को टाइम मैगजीन ने 25 सर्वकालिक राजनीतिक हस्तियों में न सिर्फ शामिल किया है बल्कि उन्हें इस श्रेणी में पहले स्थान पर भी रखा है. यह गांधी जी का प्रभाव और उनकी शिक्षा को एक सच्ची श्रद्धांजलि है. पिछले महीने ही हमने गांधीजी की पुण्यतिथि मनाई है और यह खबर सभी देशवासियों के लिए एक तोहफे की तरह है. लेकिन इतना खुश होने की जरुरत नहीं है क्योंकि यह सिर्फ मेरे ही विचार हैं, और जमाने में ऐसे कई लोग हैं जो गांधीजी को देश में फैली अशांति, बंटवारे और कश्मीर के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
आज हमारे पास बोलने की आजादी है, अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी है, कहीं भी खड़े होकर किसी के लिए भी अपने शब्द बाण छोड़ने का खुल्ला लाइसेंस है. और शायद यही वजह है कि आज ऐसे कई लोग हैं जो देश के सबसे बड़े नेता और देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को देश-विरोधी बताते हैं. तथाकथित देशप्रेमियों और राष्ट्रवादियों की नजर में बापू की वजह से देश का विभाजन हुआ था. देश के लिए न जानें कितने डंडे खाने का गांधीजी को यह फल मिला कि आज उनकी पुण्यतिथि पर किसी को उन्हें याद तक करने का समय नहीं. सौ के नोट पर गांधीजी तो सबको चाहिए लेकिम मूल जीवन में गांधी जी के बताए रास्ते पर चलना तो दूर लोग गांधी जी की परछाई से भी दूर रहना पसंद करते हैं.
गांधीजी ने स्वतंत्रता संग्राम में तो देश की अगुवाई की और भारत को दासता की बेड़ियों से आजाद करवाया लेकिन जब आजादी मिल गई तब वह अपनों के आगे हारते नजर आए. जिस तरह महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सामने धर्म-संकट पैदा हो गया था ठीक उसी तरह गांधी जी भी एक विषम स्थिति में फंस गए थे जहां उन्हें अपनों को ही पराया करना था जो गांधीजी को बिलकुल भी मंजूर न हुआ. देश के लिए अपनी जवानी, अपना परिवार सब कुछ न्यौछावर करने वाले गांधी जी ने अहिंसा और शांति के ऐसे महान पाठ पढ़ाए जिसकी कीमत शायद उन्हें नाथूराम गोड़से की गोली के रुप में मिला.
जिस सिपाही ने बिना हथियार उठाए देश को आजादी दिलाई उसे आज ऐसी जगह स्थान मिला है जिसके लिए लोग कभी भी और किसी भी हद तक हिंसा कर सकते हैं यानि पैसे के लिए. गांधीजी की फोटो के नीचे आज सभी नेता शान से रिश्वत लेते हैं और यही नहीं आज तो गांधी जी को कश्मीर में फैली आग का जिम्मेदार भी बताया जाता है.
गांधीजी की क्या अहमियत है अगर यह जानना है तो मात्र एक दिन के लिए अपने अधिकारों को भूल जाओ या किसी स्वतंत्रता सेनानी के साथ कुछ देर वक्त बिता कर देखो.
आज सच में लगता है गांधीजी मरे नहीं बल्कि हमने उन्हें मार दिया है. गांधीजी के आदर्शों, सिद्धांतों और गुणों की किसी को भी परवाह नहीं है.
खैर इतनी भड़ास बहुत है. जो टाइम ने किया वह वाकई उल्लेखनीय है. अगर आप इस खबर को जानते हैं तो बहुत बढ़िया और अगर नहीं जानते तब तो और भी अच्छी बात है क्योंकि इसी तरह हो सकता है आप मेरा ब्लॉग पढ़ लो.
दैनिक भास्कर से साभार लिया हुआ “‘टाइम’ में गांधीजी के बारे में कहा गया कि ब्रिटिश राज में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने के कारण वे भारतीय आजादी की लड़ाई की प्राणवायु बन गए. वैसे तो देश का विभाजन हो गया और गांधी की हत्या हो गई. लेकिन उनके दिखाए रास्ते पर दूसरे देशों में भी सामाजिक आंदोलन हुए. इनमें अमेरिका का नागरिक अधिकार आंदोलन भी एक था. दलाई लामा के बारे में कहा गया है कि वे सिर्फ तिब्बतियों के अधिकारों और बौद्ध शिक्षा के नहीं बल्कि पूरी दुनिया में धार्मिक सहिष्णुता व शांति के सबसे बड़े प्रवक्ता हैं.“ 😆
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