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आखिर रक्षक ही भक्षक क्यूं बन गए

चिठ्ठाकारी
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घोर कलयुग का जमाना है यह तो हम सब जानते हैं पर यह कोई नहीं जानता कि इस कलयुग में पाप इतना बढ़ जाएगा कि जिसे हम अपना रक्षक समझेंगे वह ही हमारा भक्षक बन जाएगा. पिछले कुछ दिनों में ऐसी तमाम घटनाएं हुईं जिसने हमें अपने और पराए के बारे में एक बार और सोचने पर मजबूर कर दिया है.


Happy Republic to All
Happy Republic Day to All

अभी हाल देश के कई हिस्सों से दो एमएलए जनता के सामने बेनकाब हुए हैं, जबकि बाकी अभी भी खादी पहने अपराध कर रहे हैं. यह घटना बांदा और बिहार जैसे इलाकों में राजनीति में सेक्स की पकड़ को जाहिर करती है. इन दो मामलों ने देश को शर्मसार तो किया ही है साथ ही देश में फैली अशांति और असुरक्षा की भावना को जगजाहिर कर दिया है. किस तरह एक महिला सालों तक शारीरिक प्रताड़ना को सहती है और अंत में जब उसकी बेटी की इज्जत दांव पर लग जाती है तो नारी चंडी बन जाती है और किस तरह एक हवशी एमएलए एक नाबालिग की इज्जत के साथ खेलता है, इन दोनों केसों से साफ हो जाता है.


और सिर्फ यही नहीं पिछले साल मध्यप्रदेश में एक केस सामने आया था जिसमें दो पुलिसवालों ने दबंगई के सहारे एक लड़की के साथ कई बार जबरदस्ती की और जब इससे भी मन नही भरा तो उन्होंने उसकी छोटी बहन को शिकार बनाया, और इसी तरह कुछ साल पहले जम्मू-कश्मीर में सामने आया सेक्स रैकेट भी इसी तरफ इशारा करता था कि आज हम जिसे रक्षक समझते हैं वहीं भक्षक बने हुए है.


पर सवाल यह नहीं है कि किसने क्या किया बल्कि सवाल यह है कि आखिर यह ऐसा कैसे कर सकते हैं, और इन्हें इतना हौसला मिलता कहां से है? एक ओर सरकार जहां हर मुद्दे पर विफल हो रही है वहीं दूसरी ओर सरकार अपनी जनता को भी सुरक्षित करने का माद्दा नहीं रखती.


देश के सामने यह एक बहुत बड़ी समस्या है कि आखिर कैसे एक आम आदमी अपनी रक्षा करे. आज अगर आपके पास पैसा, ताकत और जान पहचान नहीं है तो आपकी कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी. और इससे भी बुरा तो आपके साथ तब होगा जब आपकी टक्कर किसी ताकतवर और ज्यादा पहुंच वाले इंसान के साथ हो.


कुछ दिन पहले मैंने फिल्म “रावण” देखी जो वाकई वास्तविकता के बहुत करीब लगी. पर लोगों को यह फिल्म पसंद नहीं आई. फिल्म में समाज का एक ऐसा सच सामने आया जिसके बारे में सुनकर हमारे रोंगटे खडे हो जाए. कुछ पुलिस वाले आज के समय में खुद को ही न्यायमूर्ति और सबसे ताकतवर समझ बैठे हैं उनके लिए जनता दो कौड़ी के कुत्ते के बराबर है जिसके साथ वह कुछ भी कर सकते हैं. यहां मैं सिर्फ कुछ पुलिसवालों को इंगित कर रहा हूं क्योंकि मुझे ऐसा लगता है.


मुझे पता है यह तब तक नहीं बदलेगा जब तक देश की सरकार और शासन में बड़े बदलाव नहीं होते साथ ही हमारी जरुरत से ज्यादा उदार न्यायप्रणाली कोई कठोर कदम नहीं उठाती.


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