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परमाणु दायित्व विधेयक पर गैर-दायित्व की पहलकदमी

चिठ्ठाकारी
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देश की संसद में आज कल परमाणु दायित्व विधेयक को लेकर काफी बहस चल रही है . कइयों के लिए यह विधेयक गले की फांस बना हुआ है तो कुछ इसे किसी भी कीमत पर
पास करवाना चाहते हैं.

मैंने भी इस बारे में सुना तो बड़ी हैरानी हुई कि जहां एक तरह हमारे देश की सिर्फ एक नेता  को लाखों-करोड़ों की माला पहना दी जाती है, वहीं दूसरी तरफ अगर कोई परमाणु दुर्घटना होती है तो मुआवजे की रकम इतनी कम ? खैर, यह भारत है और यहां तो कुछ भी हो सकता है. आइये जानते हैं कि पूरा मसला क्या है:

Beat the Heat
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संसद के मौजूदा सत्र में केंद्र सरकार परमाणु दुर्घटना क्षतिपूर्ति संबंधी  प्रस्ताव को पारित कराकर कानून का रूप देने में जुटी है. परंतु विपक्ष और कुछ अन्य लोगों का कहना है कि यह भारत के आम लोगों के हितों  से कहीं ज्यादा परमाणु संयंत्र, उपकरण और तकनीक का काम करने वाली अमेरिकी कंपनियों का ख्याल रख रही है.

दरअसल देश में कई परमाणु संयंत्र लगाने के लिए यह अरबों डालर का अनुबंध होगा. भारत सरकार इन कंपनियों के लिए ऐसी व्यवस्था करने जा रही है, जिसमें अगर कल कोई दुर्घटना  हो जाए तो अरबों डालर का मुनाफा कमाने वाली कंपनियों की कोई जवाबदेही नहींबनेगी. इस प्रस्ताव के प्रावधानों के मुताबिक किसी भी दुर्घटना की स्थिति  में इन कंपनियों पर न तो कोई मुकदमा चल सकता है और न ही उनसे मुआवजे की  मांग की जा सकती है. भारत में बनने वाले सभी परमाणु संयंत्र का स्वामित्व भारत सरकार के जिम्मे होगा. इसलिए अगर किसी दुर्घटना के चलते नुकसान काफी बड़ा होता है तो  केंद्र सरकार मुआवजे की राशि अदा करेगी.

सरकार  ने मुआवजे की अधिकतम राशि 2,087 करोड़ रुपये निश्चित की है. यह अमेरिका में लागू कानूनी मुआवजे की राशि से 23 गुणा कम है. वहां जुर्माने की राशि संबंधित कंपनी पर 48,300 करोड़ की होती है, लेकिन भारत में यह अधिकतम मुआवजा केंद्र सरकार को देना होगा, क्योंकि उसने स्थानीय ऑपरेटर के लिए मुआवजे की राशि महज 500 करोड़ रुपये रखी है.

अब देखिए, जहां एक तरफ हम हमेशा अमेरिका की नकल करने से बाज नहीं आते वहीं हमारी सरकार जब देश के हित की तरफ देखती है तो रोना गाती है संसाधनों की कमी का. aurऔर इस बार हमने दाव पर लगाया है अपनी जनता को .परमाणु दुर्घटनाओं से होने वाले नुकसान न सिर्फ बहुत ज्यादा होते हैं अपितु इसका असर काफी समय तक बना रहता है.

पर इसके कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जैसे इससे  हमारे बिजली संसाधनों में वृद्धि होगी . देश की कंपनियां अभी इतनी बड़ी नहीं हुई हैं कि वह अकेले परमाणु संयत्र लगा सकें और खुद अपने बल पर इस क्षेत्र में कुछ खास उपलब्धि प्राप्त कर सकें . इस विधेयक से विदेशी कंपनियों को यहां अपना पैसा लगाने की आजादी मिलेगी साथ ही बिना किसी डर के वह इस क्षेत्र में बढ़ सकेंगी. और यही नहीं इससे महंगी होती हुई बिजली और ऊर्जा के दामों में कमी आएगी.

मगर यह सारी अच्छाइयां कहीं न कहीं इतनी सारी बुराइयों के पीछे छिप गई हैं. हमें यह ध्यान रखना होगा कि 1984 के भोपाल गैस कांड के बाद अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड ने जो मुआवजा दिया था, वह इससे चार गुना बड़ी रकम दो दशक पहले ही थी. बावजूद इसके आज भी हजारों पीडि़तों को मुआवजे के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. इस लिहाज से देखें तो किसी परमाणु दुर्घटना के बाद होने वाला नुकसान भयावह होता है. उसकी भरपाई महज  500 करोड़ रुपये से कैसे की जाएगी.  दरअसल, अब तक परमाणु संयंत्र में दुर्घटनाओं के ज्यादा मामले नहीं आए हैं, लेकिन वैज्ञानिक इनके खतरों से लगातार आगाह करते रहे हैं. परमाणु संयंत्र की दुर्घटना से उत्पन्न होने वाला संकट काफी हद तक परमाणु विस्फोट के बाद उपजे संकट जैसा ही होगा. आम जन-जीवन तो तुरंत प्रभावित होगा ही,  दुर्घटना के बाद सालों साल तक इलाका पूरी तरह सुनसान हो जाएगा.

भारत सरकार को अब चाहिए कि वह इस मसले पर सर्वदलीय बैठक करें और मानवहित को ध्यान में रख कर कोई ठोस कदम उठाए. साथ ही भारत सरकार को विदेशी संगठनों की मदद से अतंराष्ट्रीय स्तर पर मुआवजे की रकम को लेकर प्रस्ताव पेश करना चाहिए. क्योंकि इस प्रस्ताव को पास करने का सरकार पर कोई दवाब भी नही हैं. ताकि भविष्य में यदि कभी भोपाल कांड हुआ तो पीड़ितों को दर-दर भटकना न पड़े.

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