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कल रात को टीवी पर रात के समय केबल खराब आ रहा था सिर्फ न्यूज चैनल ही आ पा रहे थे. और हर न्यूज चैनल पर एक ही खबर “फिर हुआ द्रौपदी का चिरहरण”. देख कर दिमाग चकराने लगा सोचा लोग किस कदर पागल हो चुके है जो मरे हुए लोगों को भी नहीं छोडते.
कहानी शुरु हुई कई हजार साल पहले वेद व्यास की “महाभारत” से . तब की महाभारत की एक चरित्र थी “द्रौपदी”. इतिहास से ही यह किरदार चर्चा का विषय रही है वजह मात्र स्त्री होना.
द्रौपदी के साथ पहले तो विधाता ने मज़ाक किया जीता तो उसे अर्जुन ने मगर विवाह-सुत्र में बंधी पांचो भाइयों से . फिर भरी सभा में अपने ही पतियों के सामने चिरहरण का अपमान झेला. महाभारत के युध्द में बेटे को खोया तो बुध्दीजिवियों ने उसे ही महाभारत का कारण माना. जीते जी तो उसकी दुर्दशा की ही मरने के बाद भी आज तक लोग उसके चरित्र के बारे में तरह-तरह की धारणा रखते हैं.
हाल ही में “द्रौपदी” नामक उपन्यास को साहित्य कला अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया. वजह साफ थी किताब का मसालेदार होना. किताब में द्रौपदी को वासना में लिप्त एक स्त्री के रुप में दिखाया गया और न जाने कितने ही अन्य लांछन लगाय गए. मैंने तो उपंयास को नही पढ़ा मगर जितना सुना उसके हिसाब से मैं खुद इस किताब के खिलाफ हो गया हूं. आखिर इस उपन्यास में साहित्य और समझ की क्या बात है? क्या इस पुरस्कार को हासिल करने के लिए यही मापोदंड है कि किसी भी पुरुष या महिला के चरित्र पर जितना गंदा हो सकता हैं लिखा जाएं?
आखिर वाई लक्ष्मीप्रसाद ने किस आधार पर यह कहां कि वह सदैव कृष्ण के ख्यालों में खोई रहती थी. उपन्यास में द्रौपदी को श्रीकृष्ण के प्रेम में डूबा हुआ बताया गया हैं.
शायद हमारी साहित्य अकादमी को उनका प्रसाद द्वारा द्रौपदी का नए सिरे से चिरहरण पसंद आया तभी उन्हें साहित्य कला अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया!
आखिर कोई कृष्ण के बारें में ऐसा क्यों नही लिखता आखिर जब द्रौपदी का चरित्र शंकापूर्ण है तो कृष्ण तो भला…. सिर्फ इसलिए कि कृष्ण विष्णु का अवतार थे . कृष्ण जो भी करते उसे रासलीला का नाम मिलता है. क्या उनकी छवि को किसी ने प्लेयबॉय (PLAYBOY) की तरह दिखाने की सोची थी.
आखिर जब द्रौपदी को गलत कह सकते है तो सीता के बारें में तो न जाने इन लेखकों के मन में कितने प्रशन होंगे.
आज जब हमारे समाज में मानवीय मूल्यों का प्रतिदिन हनन हो रहा है वहां क्या इन पूराने लोगों के चरित्र को भी नही छोडा जाएगा?
क्या द्रौपदी के बाद फिर कोई सीता को भी अपमानित करेगा आखिर जब द्रौपदी के चरित्र पर सवाल उठ सकते है तो सीता पर क्यों नही ?
क्यों समाज के यह लेखक सिर्फ नारी जाति को अपना शिकार मानते हैं?
आने वाले समय में क्या जब कोई लेखक कृष्ण को PLAYBOY की उपाधी देगा तो वह भी अकादमी पुरस्कार से समानित होने का हकदार होगा ?
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