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हॉकी को हक दो

चिठ्ठाकारी
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हाकी के चलते देश एक बार फिर शर्मसार हुआ है। हाकी कहने के लिए तो भारत का राष्ट्रीय खेल है मगर इस “राष्ट्रीय खेल के लिए हाकी इंडिया के पास पैसे नहीं हैं” जी हां यह कहना मेरा नही ब्लकि हाकी इंडिया के अध्यक्ष एके मट्टू जी का हैं . जहां एक तरफ क्रिकेट के पास इतना पैसा है कि वह उसे लुटा रही है वही दुसरी तरफ हाकी जो भारत का राष्ट्रीय खेल है वह कंगाल बैठा हैं. इन सब बातों को देखते हुए मैने यह ब्लॉग लिखने का सोचा आखिर इससे अच्छा प्लेटफार्म और क्या हो सकता हैं ?

भले ही हाकी भारत का राष्ट्रीय खेल है,  लेकिन हमारी राष्ट्रीय हाकी टीम को अपने भुगतान के लिए धरने पर बैठना पड़ता है। इस खेल के  प्रशासक जब विदेशी कोच के नाम पर लाखों रुपये खर्च करने को तैयार हो जाते हैं, तो टीम के खिलाडि़यों को क्या बकाया सैलरी भी नही दे सकते.

STOP POLITICS IN SPORTS
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हाकी कहने को तो यह भारत का राष्ट्रीय खेल है मगर हालत कुछ ओर ही हैं. पिछले कई सीजन से भारत को विदेशों मे कोई बडी सफलता नहीं मिली . लोग कहते है कि भारतीय हाकी खिलाडी ही इसके लिए जिम्मेदार हैं मगर पुणे कैंप शिविर में जब भारतीय हाकी टीम वर्ल्ड कप के अभ्यास कैम्प में पहुंचा तो सारी असलीयत सामने आ गई. भारतीय हाकी खिलाडीयों ने जो किया उससे सारा देश क्षुब्ध रह गया . भारतीय हाकी खिलाडीयों ने सचाई को सामने ला दिया सोचे जब किसी को पिछले एक साल से सैलरी न मिली हो वह किस हालात में होगा. और यह हाल तो किसी एक का नहीं पूरी टीम का था.खिलाडियों ने आवाज उठाई की उन्हें बकाया भुगतान किया जांए.

इन सब के ऊपर हाकी इंडिया के अध्यक्ष एके मट्टू जी का बयान भी सुनने लायक हैं “खिलाडि़यों की मांगें जायज नहीं है। हमें मालूम है कि उनका बकाया बाकी है। हमें उसका भुगतान करना है। लेकिन हमारी दिक्कत यही है कि हमारे पास पैसा नहीं है। पैसा आते ही हम उनका भुगतान कर देंगे। हम दरअसल यह बताना चाहते हैं कि जब हाकी इंडिया का गठन हुआ, तब हमारे पास बैंक बैलेंस शून्य था।

आपको जरुर धक्का लगेगा मगर यह हकीकत हैं. आखिर जब खेल में राजनीति हावी हो जाए तो ऐसा होना जायज हैं.

दरसल हाकी को सुधारने के लिए जो सरकारी पैसा मिलता हैं उससे हाकी के चुनाव होते है और बाकी बडे अधिकारी हजम कर जाते हैं. अब भला खिलाडियों को कहां से पैसा मिले . भारतीय हाकी संघ के पूर्व मुखिया केपीएस गिल कहा करते थे कि देश की ओर सेखेलने के लिए आपको पैसे किस बात के दिए जाएं?

इस बात से आम जनता को तो धक्का लगा ही हैं इस पर मिली हाकी इंडिया की धमकी ने आग में घी का काम किया हैं. हाकी इंडिया से नया अल्टीमेटम मिलने के बावजूद अपनी मांगों पर अडिग भारतीय खिलाड़ियों ने एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए कहा कि उनके लिए देश की नुमाइंदगी करना पैसे से अधिक अहम है और वह अपने खर्च पर विश्व कप में खेलने को तैयार हैं। अब सोचिए बात इतनी बढ़ गई हैं कि खिलाडी अपने खर्च पर खेलने को तैयार हैं.

अब भला हाकी इंडिया किस आधार पर खिलाडियों को यह कहा जात हैं कि टीम विश्व कप जीतती है तो प्रत्येक खिलाड़ी को एक करोड़ रुपये दिए जाएंगे। आखिर इन लोगों को कौन समझांए कि खेल लालच से नहीं जज्बे से जीत जाता हैं और जब खिलाडी ऐसी मानसिक स्थिती से गुजर रहे हो तो जज्बा क्या खाक होगा ? आखिर कब तक इस राष्ट्रीय खेल को अपमानित किया जाता रहेगा ? क्यों न हाकी की जगह क्रिकेट को राष्ट्रीय खेल बना दिया जाएं ? आखिर इस समस्या को कैसे हल किया जा सकता हैं ?

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