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अनशन : बात मनवाने का नया राजनीतिक हथियार

चिठ्ठाकारी
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हाल ही में भारत में एक नया राज्य बनने की बात सुनी तो सोचा यार पहले ही भारत में 35 राज्य है जिन्हें याद रख पाना मुश्किल होता हैं और अब एक और नया राज्य जो सभंवत: ‘तेलंगाना’ कहलाय. मैंने सोचा क्यों न जागरण ब्लोग के द्वारा ही कुछ कहा जाय.

इस सब के पीछे मैंने जब थोडा ज्ञानार्जन किया तो पता चला कि यह तो गांधीवाद के राह पर चलते हुए हो रहा हैं. गांधीजी अपना एक हथियार यही छोड गए ‘अनशन’.

यही वह हथियार हैं जिससे इस नए राज्य की नींव खोदी गई हैं. दक्षिण भारत के सबसे बड़े राज्य आध्र प्रदेश में तेलंगाना क्षेत्र को राज्य का दर्जा देने की माग को लेकर तेलंगाना राष्ट्र समिति [टीआरएस] के नेता के चंद्रशेखर राव के आमरण अनशन से दिसंबर 2009 के पहले हफ्ते में यह खेल शुरू हुआ।आखिर हो भी क्यों न जब इतिहास में यह फार्मुला कामयाब रहा हो. डाक्टरों से उनकी चिंताजनक हालत की रिपोर्ट मिलते ही केंद्र सरकार ने तेलंगाना राज्य बनाने का ऐलान करके राव को बचा लिया। वे आध्र के पोट्टी श्रीरामालू की तरह तेलंगाना का इतिहास नहीं बन पाए। श्रीरामालू ने 58 दिनों तक अनशन करके प्राण त्याग दिए, जिसके बाद दिसंबर 1952 में पंडित नेहरू को अलग आंध्र प्रदेश बनाना पड़ा।

खेर इसका देश के अन्य हिस्सों में चल रहे अलगाववादी आंदोलन पर भी ऐसा असर पड़ा कि सिर्फ हिंसा की बदौलत अपना ‘हक’ हासिल करने पर अड़े संगठन भी जत्थेवार  आमरण अनशन पर आमादा हो गए। उनमें पहला नंबर है पश्चिम बंगाल में दार्जीलिंग और उससे सटे दूअर इलाके को मिलाकर गोरखालैंड राज्य बनाने की माग करने वाले गोरखा जनमुक्ति मोर्चा [जीजेएम] का। इसके नेता विमल गुरंग और रोशन गिरि की त्रिपक्षीय बातचीत से पहले ही दोनों ने दार्जीलिंग बंद में आमरण अनशन जोड़ दिया। दिल्ली में 21 दिसंबर को तय तीसरे दौर की उस बातचीत में रोशन गिरि शामिल तो हुए, लेकिन शर्त रख दी कि अब आगे वार्ता नहीं होगी और आमरण अनशन तब तक जारी रहेगा, जब तक केंद्र तेलंगाना की तरह दार्जीलिंग राज्य बनाने की घोषणा नहीं कर देता।  एक जनवरी से ही बिहार के बोधगया में बौद्ध भिक्षुओं ने 1949 के बोधगया मंदिर अधिनियम को रद्द करने की माग को लेकर आमरण अनशन शुरू कर दिया।

गुलाम भारत का अनशन महात्मा गाधी की देन है। गाधी युग के बाद के सबसे हॉट आमरण अनशन वर्ष 2006 में ममता बनर्जी [अभी रेलमंत्री] का रहा, जब उन्होंने 25 दिनों में सिंगुर मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की वाम मोर्चा सरकार को हाशिए पर ला दिया। नर्मदा बचाओ आंदोलन की मेधा पाटकर और चिपको आंदोलन के सुंदर लाल बहुगुणा के यदा-कदा चलते रहने वाले आमरण अनशन का यों भी सत्ता की राजनीति से कोई सरोकार नहीं।

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